स्वप्न मेरे: दिसंबर 2014

मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

किसी गरीब की किस्मत से निवालों जैसे ...

लटक रहा हूँ में उलझे से सवालों जैसे
तू खिडकियों से कभी झाँक उजालों जैसे

है कायनात का जादू के असर यादों का
सुबह से शाम भटकता हूँ ख्यालों जैसे

समय जवाब है हर बात को सुलझा देगा
चिपक के बैठ न दिवार से जालों जैसे

किसी भी शख्स को पहचान नहीं हीरे की
मैं छप रहा हूँ लगातार रिसालों जैसे

में चाहता हूँ की खेलूँ कभी बन कर तितली
किसी हसीन के रुखसार पे बालों जैसे

बजा के चुटकी में बाजी को पलट सकता हूँ
मुझे न खेल तू शतरंज की चालों जैसे

करीब आ के मेरे हाथ से छूटी मंजिल
किसी गरीब की किस्मत से निवालों जैसे 

मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

पल दो पल ज़िंदगानी अभी है प्रिये ...

खिलखिलाती हुई तू मिली है प्रिये
उम्र भर रुत सुहानी रही है प्रिये

आसमानी दुपट्टा झुकी सी नज़र
इस मिलन की कहानी यही है प्रिये

कौन से गुल खिले, रात भर क्या हुआ
सिलवटों ने कहानी कही है प्रिये

तोलिये से है बालों को झटका जहाँ
ये हवा उस तरफ से बही है प्रिये

ये दबी सी हंसी चूड़ियों की खनक
घर के कण कण में तेरी छवी है प्रिये

जब भी आँगन में चूल्हा जलाती है तू
मुझको देवी सी हरदम लगी है प्रिये

बाज़ुओं में मेरी थक के सोई है तू
पल दो पल ज़िंदगानी अभी है प्रिये

(पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर तरही मुशायरे में लिखी एक ग़ज़ल)


सोमवार, 8 दिसंबर 2014

नेह सागर सा छलकना चाहिए ...

प्रेम आँखों से झलकना चाहिए
देह चन्दन सा महकना चाहिए

बाग वन आकाश नदिया सब तेरा
मन विहग चंचल चहकना चाहिए

गंध तेरे देह की यह कह रही
मुक्त हो यौवन दहकना चाहिए

पंछियों की कलरवें उल्लास हो
नेह सागर सा छलकना चाहिए

दृष्टि का अनुबंध वो जादू करे
बिन पिए ही मय बहकना चाहिए


मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

मील के पत्थर कभी इस रह-गुज़र के देखना ...

मील के पत्थर कभी इस रह-गुज़र के देखना
लोग मिल जाएंगे फिर मेरे शहर के देखना

दूर तक तन्हा मिलेगी रेत रेगिस्तान की
फल मगर मीठे मिलेंगे इस शजर के देखना

चुट्कियों में नाप लोगे प्रेम की गहराई तुम
मन के गहरे ताल में पहले उतर के देखना

पल दो पल में देख लोगे आदमी का सच सभी
दिल को पहले आईने सा साफ़ कर के देखना

इश्क के खिलने लगेंगे फूल पीली रेत पर
प्रेम के सहरा में पहले खुद उतर के देखना

प्रेम के आकाश पर बस कृष्ण है औ कृष्ण है
वेदना में विरह की राधा निखर के देखना