स्वप्न मेरे: अपने किए पे बैठ कर रोया नहीं करते ...

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

अपने किए पे बैठ कर रोया नहीं करते ...

अपने असूलों को कभी छोड़ा नहीं करते
साँसों की ख़ातिर लोग हर सौदा नहीं करते

महफूज़ जिनके दम पे है धरती हवा पानी
हैं तो ख़ुदा होने का पर दावा नहीं करते

हर मोड़ पर मुड़ने से पहले सोचना इतना
कुछ रास्ते जाते हैं बस लौटा नहीं करते

इतिहास की परछाइयों में डूब जाते हैं
गुज़रे हुए पन्नों से जो सीखा नहीं करते

आकाश तो उनका भी है जितना हमारा है
उड़ते परिंदों को कभी रोका नहीं करते

जो हो गया सो हो गया खुद का किया था सब
अपने किए पे बैठ कर रोया नहीं करते
  

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